Trending
Shatkarma Workshop; कुरुक्षेत्र। श्री कृष्ण आयुष विश्वविद्यालय के योग विभाग द्वारा प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र में दो दिवसीय षट्कर्म कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला का शुभारंभ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. वैद्य करतार सिंह धीमान ने किया।
योग विभागाध्यक्ष प्रो. शीतल एस. महाडिक की अगुवाई में विभाग के वैद्यों ने प्रतिभागियों को जल नेति, कुंजल क्रिया और त्राटक जैसी शुद्धि क्रियाओं की जानकारी दी और उनका व्यावहारिक अभ्यास भी कराया। इस कार्यशाला में 100 से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। इस अवसर पर कुलपति प्रो. धीमान ने कहा कि केवल योगिक विचार या संकल्प ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि यह भी महत्वपूर्ण है कि हम उन्हें व्यवहार में कैसे लाते हैं। उन्होंने कहा कि षट्कर्म क्रियाओं के अभ्यास से शरीर और मन की शुद्धि होती है, जो समग्र स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।
डॉ. शीतल ने बताया कि प्राकृतिक चिकित्सा में सही आहार, योग और शुद्धि क्रियाओं का संयोजन व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखने में मदद करता है। कार्यशाला के दौरान संतुलित आहार और आहार शैली पर भी विशेष जोर दिया गया। इस मौके पर स्वस्थवृत विभाग की चेयरपर्सन प्रो. सीमा रानी, योग शिक्षक योगेंद्र कुमार, प्रो. रविराज, प्रो. रविंद्र अरोड़ा सहित कई अध्यापक व विद्यार्थी मौजूद रहे।
आयुर्वेदिक अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक प्रो. राजा सिंगल ने कहा कि आधुनिक जीवनशैली में प्रदूषण, गलत खानपान और मानसिक तनाव के कारण कई बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं। ऐसे समय में योग और प्राकृतिक चिकित्सा की शुद्धि क्रियाएं बेहद उपयोगी सिद्ध हो सकती हैं। उन्होंने कहा कि जल नेती जैसी साधारण क्रिया भी एलर्जी और श्वसन रोगों से राहत दिलाने में कारगर है। विश्वविद्यालय समय-समय पर इस तरह की कार्यशालाएं आयोजित करता रहेगा ताकि अधिक से अधिक लोग इसका लाभ उठा सकें।
शुद्धि क्रियाओं के लाभ
जल नेती: नासिका व साइनस मार्ग की सफाई, एलर्जी राइनाइटिस और नजला में लाभकारी।
त्राटक क्रिया: एकाग्रता और स्मरण शक्ति बढ़ाना, इच्छाशक्ति का विकास, तनाव मुक्ति व तंत्रिका तंत्र को मजबूत करना।
कुंजल क्रिया: पाचन तंत्र और एसिडिटी में सुधार, त्वचा संबंधी रोगों में लाभ और मुख की दुर्गंध दूर करना।